मैं बस यूँ समझलो चुत के कबीले में बसता हूँ और मेरे दोस्त लोग मुझे प्यार से चुत का गोला भी बुलाते है वैसे माँ – बाप ने मेरा नाम सौरब रखा है | लड़कियों को तो मैं बस चलता – फिरता दीवाना हूँ | और बस उप्पर वाले से हमेशा यही दुआ करता हूँ की मॉल जाये ज़ल्दी से कोई जो बुझा दे मेरी प्यास फिर से | यह कहानी में आपको अस्तुति नाम की लड़की सुनाने जा रहा हूँ जिसे मैंने अपने स्कूल के दिनों में सबसे तेज बाज़ी मारके पता लिया था | अस्तुति के चक्कर में मैंने बहुत पापड़ पेले जैसी की मैं बहुत बार मार भी खाया और इन सब का बदला तो मैं अकेले में अस्तुति की चुत की फांकों को ही चीर के ले सकता था |
मैं अकसर तो अस्तुति के घूमता रहता था पर चुत – चुदाई के मामले में थोड़ी ढील छोड़कर रखी थी पर मैं कभी ऑटो में बैठकर उसकी चुन्नी के नीचे से उसके चुचों को भींच लिया करता और कभी अँधेरे में उसकी होठों की लाली भी चुरा लेता था | किसी ना किसी बहाने आखिर वो भी मौका आ ही गया जब मुझे अस्तुति की चुत को फाड़ने का मौका मिला | एक दिन मैं अस्तुति को अपने कॉलोनी के पीछे वाले पार्क में लेकर गया जहाँ कोई सडक पर जलने वाली बत्तियाँ भी नहीं थी और सुन्न अँधेरा था | मैं वहाँ पर जाकर उसके साथ मस्त में पुलाया पर बैठे – बैठे रोमांटिक होता चला गया और कुछ ही देर में हम एक दूसरे को वहाँ चुमते हुए कुछ ज्यादा ही बेसबर हो गए और मैंने उसके टॉप के अंदर हाथ डाल उसकी चुचियों को दबाने लगा |
कुछ देर बाद मैं यूँ गर्म हो गया की मैंने उसकी उप्पर वाले टॉप को उतार दिया और उसके चुचों को पीने लगा | क्या मज़ा आ रहा था उसके गोरे चुचों को चूसने में ..! ! उसकी चुचे की चर्बी मेरे होठ के कोने में आकार लग गयी थी जिससे मैं उसके कुंवारी होने का अंदाज़ा लगा सकता था | हमें अँधेरे होने के कारण दूर - दूर तक कोई नहीं देख सकता था और वहाँ वैसे भी आता कौन . . ! ! मैंने कुछ देर बाद उसकी पैंट को खोलते हुए उसकी पैंटी को भी उतार दिया और वहीँ बैठे - बैठे उसकी उसकी चुत में ऊँगली करने लगा जिससे वो मुझसे शर्माती हुई इतराने लगी | मैंने उसके होठो को अपने मुंह भर लिया और मस्त में उसके गुलाबी होठों को चूसते हुए उसकी मस्तानी चुत में ऊँगली करने लगा |
मैंने कुछ देर बाद अस्तुति को नीचे झुक अपने लंड को चुने का इशार किया जिसपर पहले उसने मेरे लंड पर थूक लगाकर मसला और कुछ ही देर में अपने मुंह भरके आगे पीछे करने और मैं मैंने बैठे – बैठे उसकी चौड़ी हुई गांड को सहलाते हुए ऊँगली करने लगा | मैं कभी उस ऊँगली को सूंघ गर्म हो जाया करता तो तो कभी अपने मुंह में डाल चाट लेता | मैंने मज़े में तर्र हो चूका था और किसी भी तरह अब अपने लंड को अस्तुति की गुफा तक पहुँचाना चाहता था | मैंने वहीँ बैठे – बैठे अस्तुति को अपनी जाँघों पर पैर रखवाकर इस तरह बिठा लिया जिस तरह हम शौचालय में बैठा करते हैं जिससे अब उसकी चुत की फांकें सीधा मेरे लंड के नीचे आ गयीं |मैंने अब अपने लंड को उसकी चुत का रास्ता दिखाते हुए अस्तुति को मेरे लंड पर नीचे की ओर आने के लिए कहा और अस्तुति ने अपने को झटका देत हुए मेरे लंड पर छोड़ दिया और एकदम से चींख पड़ी क्यूंकि मेरे उप्पर से लेकर नीचे तक पूरा लंड उसकी चुत में जा चूका था |
मैंने तभी उसकी चुत को मलते हुए अपने लंड को निकाला फिर उसे कुछ देर बार फिर हलके – हलके अपने लंड पर छोड़ने लगा और अब तो अस्तुति को भी चुदाई का मज़ा आने लगा | कुछ मिनुटों बाद देखा तो अस्तुति मेरे लंड को अपना मुंह फाडकर सिस्कारियां भरती हुई ले रही थी और कुछ देर बाद वो मेरे लंड पर कूदने लगी | उसके कूदने से मेरी जांघें दर्द के मारे लाल पड़ गयी पर उस दर्द के १० गुणा ज्यादा मज़े का एहसास मुझे हो रहा था इसीलिए मैं सब कुछ भूलकर अस्तुति की कमर पर सहारा लगाता हुआ उसी अपने लंड पर कुद्वाता रहा | कुछ १५ मिनट बाद ही अचानक मेरे लंड से मुठ की पिचकारी निकली और खेल – खतम हो गया | मैं वहीँ अब अस्तुति को अपनी गोद में बिठाकर चुम्मा – चाटी करने | अब जब हमें कभी – कभी मन होता तो अस्तुति की चुत को फाड़ने वहीँ ले आता |
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